धनराज पिल्लै ने जमीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा तय की है। लगभग सौ शब्दों में इस सफ़र का वर्णन कीजिए।

धनराज पिल्लै की कहानी फर्श से अर्श (जमीन से आसमान तक) तक की है। धनराज एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन उन्होंने अपने जुनून के सामने गरीबी को भी मात दे दी। आर्थिक तंगी की वजह से धनराज के पास अपनी हॉकी स्टिक खरीदने के पैसे भी नहीं थे इसलिए दोस्तों के अभ्यास के बाद वह उनकी हॉकी स्टिक से खेल का अभ्यास करते। धनराज के भाई भी हॉकी खिलाड़ी थे उसी वजह से उन्हें भी हॉकी खेलने का शौक था। धनराज को पहली हॉकी स्टिक उस वक्त मिली जब उनके बड़े भाई को भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया था तब उनके भाई ने अपनी पुरानी हॉकी स्टिक उन्हें दे दी थी| यह हॉकी धनराज के लिए कीमती थी क्योंकि वह पुरानी ही सही लेकिन उनकी अपनी हॉकी स्टिक थी। अपने बड़े भाई के साथ मिलकर मुंबई लीग में धनराज पिल्लै ने अपना सिक्का जमा लिया था। धनराज प्रदर्शन से इतने खुश थे कि उन्हें इस बात का यकीन था कि साल 1988 ओलंपिक नेशनल कैंप में उन्हें जरूर बुलाया जाएगा। ऐसा नहीं होने पर धनराज को बहुत मायूसी हुई। इसके ठीक एक साल बाद धनराज को ऑलविन एशिया कप के लिए चुना गया। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यहां तक कि धनराज भारतीय नेशनल हॉकी टीम के कप्तान भी रह चुके हैं।


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